हम वो हैं जो कभी पदमावती के नाम पे,
स्कूली बच्जों के बसों पर पत्थर मारते हैं।
और हम वो भी हैं जो सौ रूपये कि खातिर,
भ्रष्ट नेताओं के संग मुल्क बेचते हैं।
कोई हमे वामपंथी कहता तो कोई कहे फासीवाद है,
हाँ!शायद हम आज की ही आवाज़ हैं।
हमने ही घाटीयों मे पंडितों को मारा था,
और हमने ही रेलगाड़ी के डिब्बे जलाये थे।
फिर हमारे जटावों से गंगा निकली,
और हमारे भुजाओं से ही कत्लेआम मचा।
कोई कहता कट्टरपंथ है तो कोई कहे राष्ट्रवाद है,
हाँ!शायद हम आज की ही आवाज़ हैं।
हमने ही कभी आदीवासीयों को बेघर कर दिया,
फिर हम ही नकसल बनकर बनदूकें चलाई।
पर जाने मुल्क के किस मुहब्बत ने,
हमे उन शहीदों के मजार पे पहुंचा दिया।
जिनकी शहादत के हम आज भी कर्जदार हैं,
हाँ! हम उन शहीदों की भी एक आवाज हैं।
द्वारा : निलेश रंजन
Very nice
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Kaafi strong punches hai aapke poem me.
Words ka kaafi strong use hua.
Achha h.
👍
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Shukriya Prakashji
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