काश! फूलों सी कहानी होती हम इंसानो की भी कभी,
तो टूटकर, पत्थर पे चढ़ने का गम ना होता!
काश! नदियों सी रवानी होती मुझमे भी कभी,
तो तेरा साथ छूटने पे आँखें कभी नम ना होती!
ये तो अजीब इत्तेफाक-ए-इश्क़ था, जो मेरा जुनूं भी छला गया!
वरना तेरे हाथों की लकीरों पे मेरी ही वफ़ादारी लिखी होती!!
खैर! अब तो हर दिन की रह जायेगी ये बेवफ़ाई,
क्यूंकी मैं अब भी तेरा ही बीता हुआ एक छोटा सा पल हूँ!
द्वारा: नीलेश रंजन